Page 54 - Mann Ki Baat - Hindi
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माँ भािरी की वाणी




                                                 वदे मथातरम् के 150 वर्ष
                                                   ां





























            भािर की आतमा से उपरा गान
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            बक्कम चंद्र चट्ोपाधयाय (1838–1894) ने जब ‘वंदे मातिरम्’ (क्ज्सका अ््ष है-
        ‘माँ, मैं तिेरे ्समक् नतिमसतिक हँ’) की रचना की, तिब वे औपक्नवक्शक दा्सतिा के बोझ
                                                        े
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        ्से दबे भारति की पीडा का जवाब दे रहे ्े। अपनी इन अमर पंक्तियों ्से उनहोंने राषट्र
        का आतमक्वशवा्स जगाने का प्रया्स क्कया। ‘वंदे मातिरम्’ मात् एक कावयातमक रचना
        नहीं रही, यह एक ‘प्रा््षना’ बन गई। गुरुदेव रबीनद्रना् ठाकुर ने इ्से जब पहली बार
        ्साव्षजक्नक रूप ्से गाया, तिो इ्सकी शक्ति जन-जन में ्संचाररति हुई। भारतिीय सवतित्तिा
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        ्सग्राम के दौरान ‘वंदे मातिरम्’ का नाद, आंदोलनों और रिांक्तियों के नारों ति्ा सवतित्तिा
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        की आकांक्ा रखने वाले हर भारतिीय के क्दल में गँजतिा रहा।
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            संघष्त से शन्र रक — एक अनर गीर
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            सवतित्तिा ्से पहले ‘वंदे मातिरम्’ प्रक्तिरोध का गीति ्ा। इ्सने महातमा गाँधी और
        ्सुभार चंद्र बो्स ्से लेकर अनेक अनाम वीरों तिक, ्सभी नतिाओं और रिांक्तिकाररयों
                                                      े
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        को प्रररति क्कया। इ्सकी गँज गक्लयों, ्सभाओं और कारागारों में अ््सर ्सुनाई दतिी
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