Page 57 - Mann Ki Baat - Hindi
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और इ्सके उद भव व क्वका्स ्से जुडी बकलक अपने राषट्र की मक्हमा को नमन
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्सामक्ग्रयों का ्समद ्संकलन उपल्ध कर रहे हैं। बक्कम चंद्र की लेखनी ्स े
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है। इ्स पोट्टल पर इ्स गीति की दल्षभ लेकर सवाधीनतिा ्सेनाक्नयों की आवाज़
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ऐक्तिहाक््सक ऑक्ियो ररकॉक्ििंग्स भी ्सुनी तिक, ्समप्षण और एकतिा का इ्सका
जा ्सकतिी हैं। वासतिव में, यह पोट्टल ‘वंदे
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मातिरम्’ के 150वें वर्ष को एक क्िक्जटल ्संदेश आज भी प्ररणा दतिा है।
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जनांदोलन में बदलतिा है जहाँ प्रतयक यह ऐक्तिहाक््सक पडाव समरण और
भारतिीय अपनी आवाज़ ‘माँ भारतिी’ को नवोनमेर का प्रतिीक है; एक ऐ्सा आह्ान
्समक्प्षति कर ्सकतिा है। जो माँ भारतिी के प्रक्ति प्रम की हमारी भावना
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भािर कयो एकरुट किने वा्ला गीर प्रोत्साक्हति करतिा है। आज भी जब हम ‘वंदे
वंदे मातिरम् केवल अतिीति का मातिरम्’ कहतिे हैं तिो यह केवल एक उच्ारण
एक गीति भर नहीं है, यह तिो भारति
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की ्सामक्हक हृदय की धडकन और भर नहीं अक्पतिु मातिृभक्म को शाशवति नमन
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देशभक्ति की राषट्रीय चतिना की लय है। होतिा है— उन मूलयों और आदशषों के प्रक्ति
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‘वंदे मातिरम्’ के 150 वर्ष मनातिे हुए हम ्समप्षण जो भारति को अनति और अमर
केवल एक गीति का उत्सव नहीं मना रहे, बनातिे हैं।
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