Page 58 - Mann Ki Baat - Hindi
P. 58

अक्धकांश भारतिीयों के क्लए बक्कमचंद्र चट्ोपाधयाय
                                                        ं
                                                  ै
                               (26 जून, 1838 - 8 अप्रल, 1894) का पररचय केवल
                               हमारे राषट्रगीति वंदे मातिरम् के रचक्यतिा के रूप में पया्षपति
                               है।  अपनी  मातिृभक्म  की  ऐ्सी  भावभीनी,  ्संवेदनशील
                                            ू
                               एवं ओजभरी वंदना भारतिीय ्साक्हतय में अनूठी है। इ्स
                                                                  ू
                               अनुपम रचना की ्स्पूण्षतिा केवल अपनी मातिृभक्म की
                               वंदना के रूप में नहीं बकलक उ्सके कषटों को दूर कर
                                          ं
                               उ्सकी योगय ्सतिान के रूप में अपनी ्सा््षकतिा पाने में
                               भी है।
                                   ं
                                  बक्कमचंद्र  चट्ोपाधयाय  ने  वंदे  मातिरम्  गीति  को
                               अपने ्सवा्षक्धक प्रक््सद उपनया्स आनंदमठ (1882) में
                                                                  ु
                               ्सक्मक्लति क्कया ्ा, क्कनति इ्सकी रचना वे बहति पहल  े
                                                  ु
                                                               ं
            रूपा गुपरा         कर चुके ्े। यह एक रोचक तिरय है क्क बक्कमचंद्र न  े
           प्रोफ़्सर, वध्षमान   वंदे मातिरम् की गीति के रूप में रचना 1870 के दशक
             े
            क्वशवक्वद्ालय
                               के आरक्भक काल में की ्ी। आनंदमठ क्लखे जान  े
                               तिक यह उनकी मेज पर रखा रहा। आनंदमठ उपनया्स
       ‘वंदे मारिम्’:          की क्ावसति में यह ्संघर्षरति ्सेनाक्नयों के कंठ ्से फूटा
                                        ु
                               और इतिना ्सटीक बैठा क्क बंग-भंग के क्वरुद सवदेशी
       सवाधीनरा का             आंदोलन ने इ्से हा्ों-हा् क्लया। इ्स गीति के पहल  े
                               श्द ‘वंदे मातिरम्’ की अनुपम धवनयातमकतिा ने इ्से वह

                                   ु
                                 ्
       अचूक मंत्र              अद भति लोकक्प्रयतिा और स्ाक्यतव क्दया क्ज्सका ्साक्ी
                               इक्तिहा्स रहा है।
                                  वंदे मातिरम् जै्से महामंत् के ्सृषटा बक्कमचंद्र के
                                                               ं
                               ्साक्हतय में वह ओजतितव प्रवाक्हति है जो उनकी पर्परा
                               पर दृढ़ आस्ा ्से अपना ्सतव ग्रहण करतिा है। इ्सी ओज
                               भाव का वे धम्ष में ्समावेश करतिे हैं। उनके क्लए धम्ष

                               वही है जो लोकक्हतिकारी है। यह लोकक्हति ्सव्ष्साधारण
                               का क्हति है। क्क्सी भी ्समाज का कलयाणकारी ्सतय
                               यही है। इ्सक्लए वे ‘ककृषणचररत्’ में ककृषणकक््ति धम्षतितव
                               में  आचरणगति  उच्तिा  का  आदश्ष  ्सामने  रखतिे  हैं,
                                        ु
                               आचारगति शदतिा का नहीं। वे धम्ष की उपयोक्गतिा जातिीय

                                      58
                                      58
   53   54   55   56   57   58   59   60   61   62   63