Page 59 - Mann Ki Baat - Hindi
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धम्ष के प्राणों की पुनः प्रक्तिषठा में मानति  े
          हैं। भारतिवर्ष का मंगल इ्सी माग्ष ्से हो
          ्सकतिा है। इ्सीक्लए वंदे मातिरम् में उनका
          देश, उ्सकी वंदना मातिा के रूप में है।
          ‘माँ  पूजनीय  है,  धरतिी  माँ  भी  वंदनीय

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          है’। जनमभक्म ्सब्से बढ़कर है। जननी
               ू
          जनमभक्मशच  सवगा्षदक्प  गरीय्सी।  वंदे
          मातिरम् गीति के भारतिीय मान्स में रिांक्ति
          लहर की तिरह ्समा जाने के पीछे अपनी
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          मातिृभक्म ्से यही लगाव और ्स्मान है।
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              यद्क्प  बक्कमचंद्र  का  जातिीयतिा
          बोध आज के भारतिीयतिा बोध ्से तिक्नक
                      ु
          क्भन्न  है,  क्कनति  ‘भारति  मातिा  की  जय’
          वसतिुतिः वंदे मातिरम् ही है। इ्स श्द का   ्सववोपरर  है।  अपने  देश  को  अपने  ्स  े
          जादू पूरे देश में तिीव्रतिा ्से फैला ्योंक्क   बढ़कर मानने का यह क्वचार आज िेढ़
          यह ्संसककृति का श्द है। अतिः पूरे देश   ्सौ वरषों बाद भी तिेजोमय है। देशभक्ति
                                                   ं
          विारा ्समझा गया।  इ्सके ्सौंदय्ष  में वह   के  इ्स  मत्  की  दीकपति  आगामी  ्सक्दयों
                                                          ं
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          बौक्दक क्वचार भी ्ा क्ज्समें मातिृभक्म   में इ्सी प्रकार जीवति रहेगी। वंदे मातिरम्



























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