Page 48 - Mann Ki Baat - Hindi
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कॉफी के ्सा् भारति का ्सफर चार शतिाक्दयों ्स े
भी अक्धक पुराना है, क्ज्सकी शुरुआति 17वीं शतिा्दी में
कना्षटक के क्च्कमगलुरु की पहाक्डयों में हुई ्ी। ्समय
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के ्सा्, भारति दक्नया के उन क्गने-चुने कॉफी उतपादक
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देशों में ्से एक बन गया है जो पार्पररक खतिी और
आधक्नक प्र्संसकरण को क्मलाकर ‘वाशि अरक्बका’ और
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‘वाशि रोबसटा’, दोनों का उतपादन करतिे हैं। आज ये अपन े
क्वक्शषट सवाद, क्ज़्मदार खतिी प्रणाक्लयों ति्ा उतपादकों,
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नवप्रवति्षकों और उद्क्मयों के ्समद नेटवककि के क्लए जाना
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जातिा है। भारति, केंद्रीय कॉफी अन्संधान ्संस्ान (CCRI)
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में वज्ञाक्नक कॉफी अन्संधान और क्वका्स की शतिा्दी मना
रहा है, और इ्स तिरह देश की कॉफी की कहानी नए उद्शय
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और गौरव के ्सा् ्सामने आ रही है।
भवभशष्टरा
एम.रे. भदनेश भारति की कॉफी मुखय रूप ्से पकशचमी घाट, जो
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अधयक्, यूनेसको क्वशव धरोहर स्ल है, और पववी घाट में उगाई
भारतिीय कॉफी बोि्ट जातिी है। चेरी को हा् ्से चुना जातिा है और धूप में ्सुखाया
जातिा है तिाक्क यह ्सक्नकशचति क्कया जा ्सके क्क केवल
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्सववोत्तम चेरी ही ्स्साक्धति की जाएँ। पकशचमी और पववी घाटों
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कॉफीः भािर की अनूठी जलवायु कप में हलकी अ्लतिा, सवाक्दषट और
मीठे म्सालों ्से भरी ्सुगंध प्रदान करतिी है।
में वनवम्तर, भािरीय कॉफी का उदयः वसर से गुण रक
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दशकों तिक, भारतिीय कॉफी का क्नया्षति बड पैमाने पर
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दुवनया भि में ्ोक वसति के रूप में क्कया जातिा ्ा। वकशवक क्वक्शषट
आंदोलन के उदय के ्सा् यह बदल गया, ्योंक्क
उपभो्तिाओं ने उतपक्त्त, प्र्संसकरण और जानकारी को
वप्रय महत्व देना शुरू कर क्दया। भारति की छाया में म्सालों और
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फलों के पडों के ्सा् उगाई जाने वाली कॉफी सवाभाक्वक
रूप ्से इन अपेक्ाओं के अनुरूप है, जो पाररकस्क्तिक
्सामंजसय, धीमी चेरी पररप्वतिा और ्सतिक्लति ति्ा क्मक्श्रति
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सवाद प्रदान करतिी है। आज भारतिीय कॉफी वकशवक कक्पंग
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काय्षरिमों, क्वशर रोसटरों की अलमाररयों और उच्-
प्रोफाइल बररसतिा चक्पयनक्शप में शाक्मल है।
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कना्षटक ्से लेकर ओक्िशा तिक के क्क्सान नई-नई
प्रो्सक््संग तिकनीकों पर प्रयोग कर रहे हैं। ये तिकनीकें धुली
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हुई (washed) और प्राकक्तिक (natural) प्रो्सक््संग ्स े
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