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खेड़ा सत़्ाग्रह और बोरसद सत़्ाग्रह




        िािर के ्वरंत्ररा संग्ाम में अनेक आंदोलन हुए। इनमें से कु्छ आंदोलनरों
        ने  जनरा  के  भदलरों  में  जोश  औि  भवशवास  ििने  का  काम  भकया।  खेड़ा
        सतयाग्ह औि बोिसद सतयाग्ह ऐसे ही दो आंदोलनरों के नाम हैं। इनमें सिदाि
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        वललििाई पटिेल ने ऐसे नेरृतव का परिचय भदया भजसने अंग्ज़ सिकाि की
        नींव भहला दी औि सतय, एकरा औि अभहंसा की राकर से जनरा ने अपने
        अभधकाि हाभसल कि भलए।


            खेड़ा सतयाग्ह (1918) – भकसानरों के हक की लड़ाई

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           x पृषठिभम : साल 1918 में गुजरात के खेडा हज़ले में हकसानों की िालत बिुत
            ख़राब ्ी। बाररश कम िुई ्ी और फसलें लगभग बबा्तद िो गई ्ीं। ऐसे में
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            भी अंग्ज़ सरकार हकसानों से लगान वसूलने का हनण्तय वापस लेने के हलए
            तैयार निीं िुई।
           x सिदाि पटिेल का नेरृतव : इस अन्याय के हख़लाफ सरदार वललभभाई पटिेल
            आगे आए। उन्िोंने हकसानों को संगहित हकया और गाँधी जी के माग्तदश्तन में
            सतयाग्ि की राि अपनाई।
           x िणनीभर : सरदार पटिेल ने हकसानों से किा हक वे एकजुटि िोकर टि्स न दें।
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            उन्िोंने हिंसा से दूर रिकर शांहत और धैय्त से अपनी बात रखने पर ज़ोर हदया।

           x जनशस्र की जीर : लगभग ढाई मिीने तक चले इस शांहतपूण्त आंदोलन
                                                                  ै
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            ने अंग्ज़ों को झुकने पर मजबूर कर हदया। आहख़रकार सरकार को टि्स में
            राित देनी पडी। यि हकसानों की बडी जीत ्ी।
           x महत्व : ‘खेडा सतयाग्ि’ ने हदखाया हक अहिंसा और एकता के बल पर बडी
            से बडी ताक़त को चुनौती दी जा सकती िै। यि आंदोलन ्वतंत्ता संग्ाम में
            जन-आंदोलन का प्रतीक बन गया।















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