Page 57 - Mann Ki Baat Hindi
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बहुत छोिी उम्र से मैंने स्वाभाट्वक
          रप से भारतीय नृतय अपना टलया ्योंटक
             े
          बच्  अपने  परर्वेश  को  ही  आतमसात
          करते हैं। भारत की गुरु-टशष्य परमपरा
          तो अदृशय सीमाएँ पहले ही पार कर चुकी
          थी। मेरी माँ में, टकसी वयश्त के भीतर
          टछपी कला को पहचानने और कलाकारों   कथक के ट्वद्ाटथमायों का ्वाटषमाक समारोह, 2025

          का  मागमादशमान  करने  की  अद ्भुत  दृशष्ि   लगभग पैंतीस ्वषमा तक मेरे माता-
          थी। अपने संकलप और उतसाही स्वभा्व   टपता ने टमलकर मंडप की मधुर लय रची।
          से ्वे मुझे उसी ईमानदारी और सूझबूझ   उनकी  अथक  कायमाटनष्ठा  से  केनद्  की
          से  बतातीं  और  सलाह  देतीं  टजस  तरह   प्रटतष्ठा सुदृढ हुई और हर ्वषमा 200 से
          ्वे  अपने  अनय  टशष्यों  को  बताती  और   250 कायमाक्रमों के आयोजनों ने कलातमक
          टसखाती थीं।                       आदान-प्रदान  का  टनरंतर  प्र्वाह  बनाए
                                            रखा।
                                               समय-समय पर बड़े कायमाक्रम मंडप
                                            पररसर के बाहर भी आयोटजत टकए गए
                                            ताटक यह कहीं अटधक दशमाकों तक पहुँच
                                            सके।
                                               1985 में आयोटजत ‘24 आ्वसमा ऑफ़
                                            राग’  संगीत  समारोह,  इसका  उतकष्ि
                                                                       कृ
                                            उदाहरण है टजसमें टहनदुसतानी संगीत के
                  नाबटनता चौधरी, 2025       जाने-माने उसतादों की एक स्वटणमाम पीढी

              यद्टप  इसके  नाम  में  एक  गहरी   एकत्र हुई थी।
          भारतीय पहचान है (इसमें संगीत कायमाक्रम,
          नृतय  प्रसतुटतयाँ  और  भारतीय  नृतय  का   24 घंिे का यह असाधारण अखंड
          ट्वद्ालय  शाटमल  था)  पर  इसके  केनद्   संगीत चक्र ्वासतट्वक समय के अनुरप
          में  ्वे  सभी  समृद्ध  परमपराएँ  भी  थीं  जो   रागों पर आधाररत था। प्रतयेक क्षण के
          भारतीय ट्वरासत से जुड़ती और सं्वाद   टलए उपयु्त राग और प्रतयेक राग उसी
          करती थीं।                         शैली में टनपुण कलाकार ने प्रसतुत टकया
              इस  प्रकार  मंडप  एक  ऐसा  जी्वंत   टजससे यह एक अटद्तीय और अप्रटतम
                        कृ
          केंद् बना जो संसकटत की सीमाओं के पार   संगीत प्रसतुटत बन गई।
          प्रदशमान कलाओं और ्वैशश्वक सं्वाद को   मुझे  याद  हैं  ्वे  कथककली  और
          समटपमात था।                       कुटियाट्टम  के  राटत्रकालीन  कायमाक्रम




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