Page 58 - Mann Ki Baat Hindi
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        जो  मेरे  माता-टपता  ने  आयोटजत  टकए   महाराज के मागमादशमान में सीखना शर
        थे। परमपरा के अनुसार ये दीघमाकाटलक   टकया।  हालाटक  सांसककृटतक  आदान-
                                                    ं
        कायमाक्रम  दशमाकों  को  सुबह  होने  तक   प्रदान की छात्र्वृटत्त के्वल एक ्वषमा के
        महाकावयों में मगन रखते और कलाकारों   टलए थी लटकन मैं इस कला में इतना
                                                  े
        को उन कला रपों की माँग के अनुसार
        वयाखया  करने  की  स्वतंत्रता  और  गहन   डूब चुकी थी टक नौ साल तक यहीं की
        अटभवयश्त का अ्वसर देते थे।        होकर रह गई। गुरु जी की हर वयाखया
                                          को  आतमसात  करने  को  उतसक  मैंन  े
                                                                  ु
                                          गुरु-टशष्य परमपरा का पालन करते हुए
                                          गहन और कटठन अधययन में अपने को
                                          पूरी तरह समटपमात कर टदया।






         1978 में ‘राम पट्टाटभषेकम्’, पेररस के टनकि
         टथएिर जेराड्ट टफ़टलप में कथककली राटत्र का
          भवय समापन। छायाकारः रॉजर टफ़टलपुजी

            अनेक  प्रकार  की  सांसककृटतक
        गटतट्वटधयों से टघरी मेरी वयश्तगत यात्रा
        तो असल में, प्रखयात कलाकार शटममाला   खजुराहो नृतय उतस्व 2010 में इजाबेल ऐना का

        शमामा द्ारा मंडप में कथक की कक्षाएँ शर   गुरु पं. जयटकशन महाराज के साथ एकल नृतय
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        टकए जाने के कुछ ्वषमा पशचात 1998 में   2006 में स्ातक होने के कुछ ही
        शर हुई। मेरी टजज्ञासा ने आट़िरकार   समय बाद मैं आईसीसीआर- कथक के
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        मुझे भी एक कक्षा आजमाने को प्रररत   मानयता प्रापत एकल कलाकारों की सूची
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        टकया। च्कर लेना या घुमररया, ताल   में शाटमल हो गई। इस सममान ने समपमाण
        पर  पैर  चलाना  यानी  ततकार,  और   की मेरी भा्वना को दृढ टकया और एक
                                          बहु-सांसकटतक कलाकार के रप में मेरी
                                                  कृ
        लयबद्ध संचालन जैसी कथक की गररमा   पहचान बनी। इस उपलश्ध से मेरे माता-
        और जटिलता ने मेरा टदल जीत टलया!   टपता  अतयटधक  गौर्वाशन्वत  हुए।  उनका
        2001  में  मैंने  नई  टदलली  के  प्रटतशष्ठत   टनःशतमा प्रोतसाहन और हमेशा साथ होने

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        कथक केनद् में आईसीसीआर छात्र्वटत्त   की भा्वना, भले ही दूर से सही पर मेरे
        पर प्र्वेश टलया और पटडत जयटकशन    टलए एक आशी्वामाद जैसी थी और इसने
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