Page 56 - Mann Ki Baat Hindi
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पेररस में मंडप की सथापना मेरे स्वगमीय माता-टपता
टमलेना साशल्वनी (2019 में पद्मश्री से सममाटनत) और रॉजर
टफटलपुजी ने 1975 में की थी। उस समय मेरी माँ अपने
भारतीय नृतय की कक्षाओं के टलए एक सिूटडयो की तलाश
में थीं। भारत-प्रेम और प्रदशमान कलाओं के प्रटत दोनों के गहरे
अनुराग से मंडप का जनम हुआ और यहीं से उनके अनय
कायषों का ट्वसतार हुआ।
इ़िाबेल ऐना
टनदेशक
सेंिर मंडप, पेररस
मंडप
यह जगह टमलने पर मेरे उद्मी और टबलडर टपता ने
िीमाओं पहले ही भाँप टलया टक प्रदशमान कलाओं के टलए यह जगह
िे परे एक बहुत उपयु्त रहेगी। उनहोंने इसकी ्वासतुकला की कलपना
करके तुरंत न्वीनीकरण का काम शुर कर टदया। दोनों ने
सिराित की टमलकर इसका नाम रखा ‘मंडप’ और उसी ्वषमा शरद काल
में यहाँ पहला कायमाक्रम हुआ। यह इसका दूसरा जनम था!
परीकथा
1980 में 4 ्वषमीय इजाबेल मंडप के प्र्वेश द्ार पर भरतनाट्यम के
अडा्वु (नृतय का प्रारशमभक चरण) का अभयास करती हुई।
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