Page 61 - Mann Ki Baat - Hindi
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अंश को गातिा है। कक्वतिा के उत्तराध्ष में िूबे हुए ्े। इ्स गीति ने उनमें पुनः
को छोड क्दया जाए तिो प्र्माध्ष में तिो सफूक्ति्ष का ्संचार क्कया। बी्सवीं ्सदी के
माँ, मातिृभूक्म को दुब्षल मानने पर प्रश्न प्र्म दशक के आर्भ में ही देश ने नई
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उठाया है। प्र्म आठ ्संसकति पंक्तियों के करवट ली। देशवाक््सयों ने इ्स गीति में वह
पशचाति बंक्कमचंद्र क्लखतिे हैं - प्राण-्संचाररणी शक्ति पाई जो ्संघर्ष के
्सपतिकोटी-कंठ-कल-कल- ्संकटापन्न प् पर उनकी ्सुदीघ्ष ्साक््न
क्ननाद-कराल ्ी। वंदे मातिरम् पर उनका दृढ़ क्वशवा्स
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क्वि्सतिकोटी-भुजै धति-खरकरवाले, कभी क्िगा नहीं। क्कतिने ही लोग इ्से
अबला केन मा एति बले। गातिे-गातिे फाँ्सी पर झूल गए। अ्संखय
बहुबल-धाररणीं नमाक्म तिाररणीं राजनैक्तिक आघातिों को ्सहतिे हुए वंदे
ररपुदल-वाररणीं मातिरम्।। मातिरम् ने अपनी प्रेरणादायी ऊजा्ष अक्णण
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यहाँ ्सपति कोक्ट कंठ के ्संबंध में रखी। काल बदले, पररकस्क्तियाँ बदलीं,
यह उललखनीय है क्क बक्कमचंद्र न े लोग बदले, यहाँ तिक क्क देश लोकतित् में
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्सन 1872 की बंगाल की जन्संखया का पररवक्ति्षति हुआ तिो मान्स बदले क्कनतिु वंदे
प्रयोग क्कया ्ा जबक्क उ्स ्समय भारति मातिरम् ने भारति मातिा की उ्स ओजमयी
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की जन्संखया 30 करोड ्ी। ्सतिानवत्सला आशादाक्यनी छक्व को
भाव, भारा और क्शलप की इ्स अद ्भुति बदलने नहीं क्दया। इ्सका स्ाक्यतव
कारीगरी ्से बंक्कमचंद्र चट्ोपाधयाय ने उन भारतिीय जनमान्स की वैचाररक एकतिा
लाखों हृदयों को छुआ जो क्नराशा के गत्त्ष का ्साक्ी है।
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