Page 8 - Mann Ki Baat - Hindi
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प्रभात सिंह मोडभाई बरहाट                 सुरेश राघवन
        पेंदटंगस  की  बात  किते  हुए  मुझे  एक   हैं।  तदमलनाडु  में  ्ाडा्लली  के  एक
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        औि  अनो्खी  पेंदटंग  की  याि  आ  गई   सािी हैं, सिेश िाघ्न जी। िाघ्न जी
        है। ये पेंदटंग िाजकोट के एक आदट्डसट   को पेंदटंग का शौक है। आप जानते हैं,
        प्भात दसंह मोडभाई बिहाट जी ने बनाई   पेंदटंग कला औि कैन्ास से जुड़ा काम
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        िी।  ये  पेंदटंग  छत्पदत  ्ीि  दश्ाजी   है, लदकन िाघ्न जी ने तय दकया दक
        महािाज  के  जी्न  के  एक  प्संग  पि   ्ो अपनी पेंदटंग के ज़रिए पेड़-पौधों औि
        आधारित  िी।  आदट्डसट  प्भात  भाई  न  े  जी्-जंतुओं की जानकािी को सिदक्त
                                                                   ं
        िशा्वया िा दक छत्पदत दश्ाजी महािाज   किेंगे।  ्ो  अलग-अलग  फलोिा  औि
        िाजयादभरेक  के  बाि  अपनी  कुलि्ी   िॉना की पेंदटंगस बनाकि उनसे जुड़ी
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        ‘तुलजा माता’ के िश्वन किने जा िह  े  जानकािी  का  डॉकयमेंटेशन  किते  हैं।
        िे, तो उस समय कया माहौल िा। अपनी   ्ो  अब  तक  िज्वनों  ऐसी  दिदड़याओं
        पिमपिाओं,  अपनी  धिोहिों  को  जी्ंत   की,  पशुओं  की,  ओदि्वडस  की  पेंदटंगस
        ि्खने के दलए हमें उनहें सहेजना होता है,   बना िुके हैं, जो द्लुपत होने की कगाि
                                                                      े
        उनहें जीना होता है, उनहें अगली पीढ़ी को   पि हैं। कला के ज़रिए प्कृदत की स्ा
        दस्खाना होता है। मुझे ्खुशी है दक आज,   किने का ये उिाहिण ्ाकई अि भुत है।
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        इस दिशा में अनेकों प्यास हो िहे हैं।
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                                              मिे  पयािे  िेश्ादसयो,  आज  मैं
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            मिे  पयािे  िेश्ादसयो,  कई  बाि   आपको  एक  औि  दिलिसप  बात  भी
        जब  हम  इकोलॉजी,  फलोिा-िॉना,     बताना िाहता हँ। कुछ दिन पहले सोशल
                                                     ू
        बायोडाइ्दस्वटी  जैसे  शबि  सुनते  हैं,   मीदडया  पि  एक  अि भुत  क्ेज  दि्खा।
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        तो कुछ लोगों को लगता है दक ये तो   अमेरिका  ने  हमें  सौ  से  ़जयािा  िल्वभ
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        सपशलाइ़जड  सबजकट  है,  इनसे  जुड़े   औि प्ािीन कलाकृदतयाँ ्ापस लौटाई
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        एकसपरस्व  के  द्रय  हैं,  लदकन  ऐसा   हैं। इस ्खबि के सामने आने के बाि
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        नहीं  है।  अगि  हम  ्ाकई  प्कृदत  स  े  सोशल मीदडया पि इन कलाकृदतयों को
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        प्म  किते  हैं,  तो  हम  अपने  छोटे-छोटे   लेकि ्खूब ििा्व हुई। य्ाओं में अपनी
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        प्यासों  से  भी  बहुत  कुछ  कि  सकत  े  द्िासत  के  प्दत  ग््व  का  भा्  दि्खा।
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