Page 39 - Mann Ki Baat Hindi
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से ओतप्रोत उपभोग का प्रतीक बन चुकी   टफर  भी,  यह  पुनजामागरण  के्वल
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          है। इसकी टबक्री में ्वटद्ध इस बात का   चरखे  के  प्रतीक  तक  सीटमत  नहीं  है।
          प्रमाण है टक देश अपने स्वदेशी गौर्व को   आज  का  भारत  अपने  हथकरघा  और
                                                                ृ
          पुनः खोज रहा है। गाँधी जयंती पर खादी   हसतटशलप  क्षत्र  को  नई  दशष्ि  से  देख
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          उतपाद खरीदने और ग्वमा से स्वदेशी के   रहा है, जहाँ प्राचीन बटद्धमत्ता को ्वैशश्वक
          नारे की पहल, तथा #VocalForLocal   बाजार  के  अनरप  पुनपमाररभाटषत  टकया
                                                       ु
          जैसे  अटभयानों  से  यह  के्वल  आटथमाक   जा रहा है। यह क्षत्र ऐसे परर्वतमान के दौर
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          टनणमाय नहीं बशलक सांसकटतक स्वाटभमान   से गुजर रहा है, जहाँ इसके मौटलक मूलय
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          का सश्त उदघोष बन गया है।          को  आज  रणनीटतक  रप  से  टडजाइन





            “हथकरघा परर्वार में पले-बढे होने के कारण हमने केल  े
         और संबू घास जैसे प्राककृटतक रेशों को चुना, ताटक पयामा्वरण
         अनुककूल योगा मि बना सकें। हम सथानीय बुनकरों को
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         सीधे उटचत मजदूरी और शसथर रोजगार देकर सश्त
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         बनाते हैं। आज 200 से अटधक परर्वार हमारे साथ जड़े
         हैं। हमारा उद्शय पारमपररक कला को आधटनक न्वाचार स  े
                                         ु
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         जोड़ना है, ताटक यह ट्वरासत आज के बाजार में भी जीट्वत
         और प्रासटगक बनी रहे।”
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                                                         े
                                              -प्म (या़ि निुरलि, तसमलनाडु)
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