Page 38 - Mann Ki Baat Hindi
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फश्त िे अश्त तक




                                हथकरघा और हसतटशलप की नई पहचान




























            भारत की सांसककृटतक ट्वरासत का ताना-बाना करघे पर बुना गया है और इसके
        रंग कारीगरों के हाथों से भरे गए हैं। सटदयों से जी्वंत परमपराओं के संरक्षक के रप

        में इस क्षत्र ने हमारे समाज की आतमा को सजी्व रप टदया है। परंतु स्वतंत्रता के
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        बाद के दशकों में यह जगमगाता उद्ोग बड़े सतर पर मशीनी उतपादों की चकाचौंध में
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        कुछ फीका पड़ गया था। आज हालाटक इसमें एक पुनजामागरण चल रहा है-एक ऐसा
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        आंदोलन जो परमपरा और आधटनक न्वाचार के संगम से इस क्षत्र को एक नया स्वरप
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        प्रदान कर रहा है।
            इस पुनजामागरण का दाशमाटनक आधार ‘स्वदेशी’ का टसद्धांत है, टजसे महातमा गाँधी ने
        अदमय उतसाह से अपनाया था। गाँधीजी के टलए ‘खादी’ के्वल एक कपड़ा नहीं था; बशलक

        आतमटनभमारता का प्रतीक, आटथमाक स्वतंत्रता का माधयम और राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने

        ्वाला धागा था। कुछ दशकों की टगरा्वि के बाद, टपछले दस ्वषषों में खादी ने टफर से नया
        जी्वन पाया है—अब यह के्वल बीते युग की याद नहीं, बशलक जागरक और देशभश्त


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