Page 41 - MAAN KI BAAT - HINDI
P. 41
्सम्ान देने का आह्ान जजनहोंने ्सववोच् ्सुरक्षा गाड्ट के रूप ्ें का् जकया और
बजलदान जदया था। अपनमी क्ाई का एक-एक रुपया इ्स
अटूट ्संकलप के ्साथ उनहोंन े पजवत् ज्शन को ्स्जप्मत कर जदया।
ं
वह काय्म शुरू जकया जो आगे चलकर आज उनका ्सग्ह राषट्मीय गौरव का
ं
उनके जमीवन का लक्य बन गया: भारत एक स्ारकमीय ्सग्ह है: प्रथ् जवशव युद्ध
ै
के शहमीदों कमी कहाजनयों को एकजत्त ्ें शहमीद हुए 76,000 ्सजनकों, जद्तमीय
करना और उनका ्संरक्षण करना। उ्स जवशव युद्ध के 80,000 ्सजनकों और
ै
े
ं
्स्य उनके पा्स उन प्ररक कहाजनयों भारत कमी सवतत्ता के बाद ्से 27,000
वाले अखबार खरमीदने के जलए दो ्से अजधक शहमीदों के अजभलेख। उनके
रुपये भमी नहीं होते थे। जनडर होकर वे पा्स 23,156 तसवमीरें और 26 बकवटल
ं
्सुबह-शा् अपने गाँव कमी रेल पटररयों दसतावज हैं, जजनका प्रतयक पृषठ राषट्
े
े
पर घमू्ते और फेंके हुए अखबारों को के जलए ्स्जप्मत जमीवन का प्र्ाण है।
ं
इकट्ा करके वमीरता और बजलदान कमी लजकन जजतेंद्र का का् ज्सफ़्क ्सग्ह
े
कहाजनयों को एक ्साथ जोड़ते। इनहीं ्से कहीं आगे जाता है। यह प्रे्, स्रण
ं
्साधारण शुरुआतों ्से ‘शहमीद ्सग्ह’ का और जड़ाव का काय्म है। उनहोंने जाना
ु
जन् हुआ। जक युद्ध के दौरान, ्सजनक अक्सर
ै
जजतेंद्र ज्संह ने 26 वषषों तक एक अपने पररवारों को अपनमी ्सला्तमी का
41 41

