Page 40 - MAAN KI BAAT - HINDI
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शहीदों के गौरव की रक्ा
जजतेंद्र ज्संह कमी कहानमी
्सरत के चहल-पहल भरे शहर ्ें, पहाड़ों के ्सन्ाटे ्से दमूर, जहाँ पहरेदार पहरा
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देते हैं, जजतेंद्र ज्संह राठौर ना् का एक ्साधारण ्सुरक्षा गाड्ट रहता है। दो दशकों ्से भमी
जयादा ्स्य ्से, वह जक्समी भमी इ्ारत या ्समपजत्त ्से कहीं जयादा गहरमी चमीज कमी रक्षा
कर रहा है — वह देश के शहमीदों कमी स्ृजत कमी रक्षा करता है, उनकमी कहाजनयों को
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उ्स ्स्प्मण के ्साथ ्संजोता है जो देशभबकत के ्ल ्सार को नए ज्सरे ्से पररभाजषत
करता है।
जजतेंद्र ज्संह का ्सफ़र एक ्सपने ्से शुरू हुआ — अपने जपता और पमूव्मजों कमी
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तरह भारतमीय ्सेना ्ें ्सजनक बनकर देश कमी ्सेवा करने का ्सपना। लजकन 1999
्ें, कारजगल युद्ध के दौरान, ्सेना भतथी कमी शारमीररक परमीक्षा ्ें वे ज्सफ़्क एक ्सेंटमी्मीटर
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्से चक गए। जदल टूटा जरूर, लजकन हारे नहीं, जलद हमी उनहें एक शोकाकुल जपता
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के श्दों ्ें अपना उद्शय ज्ल गया। उनहोंने शहमीद अजु्मन रा् ब्सवाना के जपता के
बारे ्ें पढ़ा, जजनहोंने कहा था, “्ेरा बेटा चला गया तो कया हुआ, देश तो ्सुरजक्षत ह ै
ना?” उ्स एक कथन ने जजतेंद्र के ्न ्ें उद्शय कमी एक लौ जला दमी — उन लोगों को
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