Page 9 - MAN KI BAAT HINDI
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हमारा नाम ऊूँचा कर गया और इसस  े  और ली्र दान करके गईं। आज ‘मन
          और बड़ी बात है फक आज आपसे बात      की बात’ में उनके बेटे भाई अफभजीत
          हो रही है इस फ्षय पे। हम प्ाउड िील   चौधरीजी  हमारे  साथ  हैं।  आइए  उनस  े
          कर रहे हैं।                       सुनते हैं।
              प्धानमंत्ीजी  :  सुखबीरजी,  आज   प्धानमंत्ीजी   :   अफभजीतजी
          आपकी बेटी का फसिफ़ एक अंग जीफ्त   नमसकार।
          है, ऐसा नहीं है। आपकी बेटी मान्ता    अफभजीतजी :  प्णाम सर।
          की अमर-गाथा की अमर यात्ी बन गई       प्धानमंत्ीजी  :  अफभजीतजी  आप
          है।  अपने  शरीर  के  अंश  के  ज़ररए  ्ो   एक ऐसी माँ के बेटे हैं, फजसने आपको
          आज भी उपससथत है। इस नेक कायचा के   जनम  देकर  एक  प्कार  से  जी्न  तो
                                                    े
          फलए मैं आपकी, आपकी श्ीमतीजी की,   फदया ही, लफकन और जो अपनी मृतय  ु
          आपके परर्ार की सराहना करता हँ। ू  के बाद भी आपकी माताजी कई लोगों
                                                                 ु
              सुखबीरजी : थैंक यू सर         को जी्न देकर गईं। एक पत् के नात  े
              प्धानमंत्ीजी  :  साफथयो,  ऑगचान   अफभजीत आप ज़रूर ग्चा अनुभ् करत  े
          डोनेशन के फलए सबसे बड़ा जजबा यही   होंगे।
          होता है फक जाते-जाते भी फकसी का भला   अफभजीतजी : हाँ जी सर।
          हो जाए, फकसी का जी्न बच जाए। जो      प्धानमंत्ीजी  :  आप  अपनी
          लोग, ऑगचान डोनेशन का इंतजार करत  े  माताजी के बारे में ज़रा बताइए, फकन
          हैं,  ्ो  जानते  हैं  फक  इंत़जार  का  एक-  पररससथफतयों  में  ऑगचान  डोनेशन  का
                                  ु
          एक  पल  गुजारना,  फकतना  मस्कल    िैसला फलया गया ?
          होता है और ऐसे में जब कोई अंगदान     अफभजीतजी  :  मेरी  माताजी
          या देहदान करने ्ाला फमल जाता है, तो   सराइकेला बोलकर एक छोटा-सा गा्
                                                                        ँ
          उसमें ई््र का स्रूप ही नज़र आता   है झारखंड में, ्हाँ पर मेरे मममी-पापा
          है।  झारखंड  की  रहने  ्ाली  स्ेहलता   दोनों  रहते  हैं।  ये  फपछले  पच्ीस  साल
          चौधरी जी भी ऐसी ही थी, फजनहोंने ई््र   से लगातार मॉफनिंग ्ॉक करते थे और
          बनकर दूसरों को फज़नदगी दी। 63 ्षचा की   अपनी  हफबट  के  अनुसार  सुबह  4  बज  े
                                                  ै
          स्हलता चौधरीजी, अपना हाट्ट, फकडनी   अपने मॉफनिंग ्ॉक के फलए फनकली थीं।
            े



















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