Page 65 - Mann Ki Baat Hindi
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गहरा आघात सहन न कर पाने के कारण
          परर्वार  की  देखभाल  नहीं  कर  सके।

          ननहा  बालक  अपने  जी्वन  का  रासता
          स्वयं  खोजने  को  मजबूर  था।  उनहोंन  े
                               ू
          छोिे-मोिे काम टकए, घुमनत साधुओं के
          संग जगह-जगह घूमे और जीने के टलए
          रेल्वे सिेशनों पर रातें कािीं।
                                                               ै
              इन कटठनाइयों ने उनकी सोच गढी     डॉ िनतेसश्वरा सलंगन्नया भैरप्ा
                                               (जनम: 20 अगसत 1931, हासन, कनामािक
          और जी्वन की ्वासतट्वकताओं की गहरी   मृतय: 24 टसतमबर 2025, बेंगलुरु; आयु 94 ्वषमा)
                                                ु
          समझ  दी।  आगे  चलकर  उनकी  कई
          रचनाएँ  इनहीं  अनुभ्वों  -  पररजनों  को   ट्वश्वट्वद्ालय  से  दशमानशासत्र  में  स्वणमा
          खोने, जी्वन के संघषमा और आतम-खोज   पदक के साथ स्ातकोत्तर की टडग्ी ली।
                      े
          की यात्राओं से प्रररत हुईं।       बाद में सतय ए्वं सौनदयमा ट्वषय पर उनहोंने
              सशक्ा और अधया्न               पीएच.डी. की उपाटध हाटसल की।
              भैरपपा की टशक्षा कटठन पररशसथटतयों   उनहोंने  कनामािक  के  ट्वटभन्न
          में पूरी हुई। अनेक बाधाओं के बा्वजूद   महाट्वद्ालयों में दशमानशासत्र का अधयापन
          उनहोंने  दृढ  संकलप  और  आतमबल    टकया और बाद में टदलली शसथत राष्ट्रीय
          के  सहारे  पढाई  जारी  रखी।  मैसूर   टशक्षा  अनुसनधान  ए्वं  प्रटशक्षण  पररषद

                                            में  कायमा  टकया।  अधयापन  उनके  टलए

                                            के्वल नौकरी नहीं बशलक अपने ट्वचारों
                                            की  टनरंतर  खोज  का  एक  मागमा  था।
                                            उनके ट्वद्ाथमी उनहें एक संयमशील और
                                            अनुशाटसत टशक्षक के रप में याद करत  े

                                                                      े
                                            हैं जो उनहें गहन टचंतन के टलए प्रररत
                                            करते थे।

                                               गहरी  िोि  और  ितयसनष्ठा  के
                                            लेखक
                                                                       ु
                                               भैरपपा  ने  उपनयास  टलखने  शर
                                            टकए  टजनमें  उनका  दाशमाटनक  टचंतन


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