Page 26 - MANN KI BAAT (Hindi)
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        करते हुए कहा था, “सितंत्रता, समानता   अथ्ष  ह–  सतय  एक  है,  लखकन  ज्ाानी
        और बंधुति के इन खसद्धांतों को खत्रमूखत्ष   इसे अलग तरह से समझते हैं। िूसर  े
                                                  ं
        में अलग-अलग िसतुओं के रूप में नहीं   श्िों में सखिधान भारत की सांसककृखतक
        माना जाना चाखहए। ये इस अथ्ष में खत्रमूखत्ष   खिरासत  की  भाषा  बोलता  है  और  िेश
        का इस प्रकार संयोजन करते हैं खजसमें   की  ऐखतहाखसक,  सांसककृखतक  तथा
        एक को िूसरे से अलग करना लोकतंत्र   सामाखजक  िासतखिकताओं  पर  खिचार
        के  उद्शय  को  पराखजत  करना  है।   करने िाले प्रािधानों के साथ भारतीय
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                                           ं
        सितंत्रता को समानता से और समानता   सिभ्ष  के  खलए  खिखशषट  रूप  से  तैयार
        को  सितंत्रता  से  अलग  नहीं  खकया  जा   खकया गया है।
        सकता है, न ही सितंत्रता और समानता     डॉ.  अामबेडकर  ने  संखिधान  सभा
        को बंधुति से अलग खकया जा सकता है।   में  भारत  की  लोकतांखत्रक  खिरासत
        खबना बंधुति के समानता और सितंत्रता   का  खिशेष  रूप  से  उललेि  खकया  और
        पेंट  की  परत  से  अखधक                       2500   साल   पहले
        गहरी नहीं होगी।”                              खहनिू  साम्ाजयों  और
            इसके     अलािा,                           बौद्ध  संघों  में  प्रचखलत
        उनहोंने  चेतािनी  िी  थी                      लोकतांखत्रक   तथा
        खक  केिल  राजनीखतक                            संसिीय प्रथाओं के बारे
        समानता  काम  नहीं                             में बताया।
        करेगी।  हमें  सामाखजक  और  आखथ्षक     “ऐसा नहीं है खक भारत को लोकतंत्र
        धरातल पर भी समानता के खलए प्रयास   का  ज्ाान  नहीं  था।  एक  समय  था  जब
        करने होंगे।                       भारत में गणतंत्र थे और जहाँ राजतंत्र
            भारतीय सखिधान में कुछ प्रािधानों   भी थे, िे या तो खनिा्षखचत थे या सीखमत
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        को  खिखभन्न  अंतरराषट्रीय  स्ोतों  स  े  थे।  िे  कभी  भी  खनरंकुश  नहीं  थे।  ऐसा
        खलया गया है, खजनमें खब्टेन, अमरीका,   नहीं है खक भारत को संसि या संसिीय
        आयरलैंड  और  कनाडा  की  शासन      प्रखरिया  का  ज्ाान  नहीं  था।  बौद्ध  खभक्षु
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        प्रणाखलयों के प्रािधान शाखमल हैं, लखकन   संघों के अधययन से पता चलता है खक न
        मम्ष  या  मूल  मूलय  और  सार,  भारत   केिल संसिें थीं, बकलक संघ भी संसिों
        के सभयतागत अनुभि से प्रापत हुए हैं।   के अलािा कुछ नहीं थे। संघ आधुखनक
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        उिाहरण के खलए, यह भखम और इसके     समय में ज्ाात संसिीय प्रखरिया के सभी
        लोग  ऋगिेि  के  खिनों  से  ही  खिखिधता   खनयमों  को  जानते  और  उनका  पालन
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        और खिचारों की बहुलता के बीच सि  भाि   करते थे। उनके पास बैठने की वयिसथा,
        में रहते आए हैं, खजसमें कहा गया ह–   प्रसतािों,  संकलपों,  कोरम,  कवहप,  मतों
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        एकम सत , खिप्रा बहुधा ििखत, खजसका   की खगनती, मतपत्र द्ारा मतिान, खनिा
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