Page 6 - Mann Ki Baat - Hindi
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जुड़े  स्ा््टअपस  की  चचा्द  की  िी।  इस
                                          बार भी मुझे फचठिी फलिकर कई ऐस  े
                                          लोगों के बारे में बताया गया है, जो पानी
                                          की  एक-एक  बँद  बचाने  के  फलए  जी-
                                                      ू
                                          जान से लगे हैं। ऐसे ही एक सािी हैं,
                                          यूपी के बांदा फज़ले के तुलसीराम याद्
                                          जी।  तुलसीराम  याद्  जी  लुकतरा
                                          ग्ाम  पंचायत  के  प्धान  हैं।  आप  भी
                                                              ु
                                          जानते हैं फक बांदा और बंदेलिंड क्ेत्
                                          में पानी को लेकर फकतनी कफिनाइया  ँ
                                          रही हैं। इस चुनौती से पार पाने के फलए
                                                         ँ
        मुझे फ्््ास है, साइकलोन फबपरजॉय न  े  तुलसीराम जी ने गा् के लोगों को साि
        जो तबाही मचाई है, उससे भी कच् के   लेकर इलाके में 40 से ज़यादा तालाब
                  े
        लोग बहुत तज़ी से उभर जाएँगे।      बन्ाए  हैं।  तुलसीराम  जी  ने  अपनी
                                            ु
            साफियो,  प्ाकृफतक  आपदाओं  पर   मफहम का आधार बनाया है– िेत का
                                                                   ँ
                                                       ँ
        फकसी का ज़ोर नहीं होता, लफकन बीते   पानी  िेत  में,  गा्  का  पानी  गा्  में।
                              े
        ्रषों  में  भारत  ने  आपदा  प्बनधन  की   आज उनकी मेहनत का ही नतीजा ह  ै
                                                    ँ
        जो  ताकत  फ्कफसत  की  है,  ्ो  आज   फक उनके गा् में भू-जल सतर सुधर
        एक  उदाहरण  बन  रही  है।  प्ाकृफतक   रहा है। ऐसे ही यू.पी. के हापुड़ फज़ले में
        आपदाओं से मुकाबला करने का एक      लोगों ने फमलकर के एक फ्लुपत नदी
        बड़ा तरीका है – प्कृफत का संरक्ण।   को  पुनजजीफ्त  फकया  है।  यहाँ  कािी
        आजकल मानसून के समय में तो इस      समय  पहले  नीम  नाम  की  एक  नदी
        फदशा में हमारी फज़ममदारी और भी बि   हुआ  करती  िी।  समय  के  साि  ्ो
                        े
                                                      े
                                                                    मृ
        जाती है। इसीफलए ही आज देश ‘कैच द   लुपत हो गई, लफकन सिानीय समफतया  ँ
        रेन’ जैसे अफभयानों के जररए सामफहक   और  जन-किाओं  में  उसे  हमेशा  याद
                                  ू
        प्यास कर रहा है। फप्ले महीने ‘मन   फकया  जाता  रहा।  आफिरकार,  लोगों
        की बात’ में ही हमने जल संरक्ण स  े  ने  अपनी  इस  प्ाकृफतक  धरोहर  को


















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