Page 13 - Mann Ki Baat - Hindi
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              मेिे पयािे देशवाभसययो, अब ‘मन की   में क्लखा गया ्ा लक्कन इ्सकी भावना
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          बार’ में एक ऐसे भवषय की बार, रयो हम   भारति की हज़ारों वर्ष पुरानी अमर चतिना
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          सबके भद्लों के बेहद किीब है। ये भवषय   ्से जडी ्ी। वेदों ने क्ज्स भाव को ‘मातिा
                                                        ृ
                                             ू
          है हमािे िाष्ट्र गीर का- भािर का िाष्ट्र   भक्म: पुत्ो अहं पक््वया:’ कहकर भारतिीय
                                                                ं
          गीर यानी ‘वंदे मारिम्’। एक ऐसा गीर,   ्सभयतिा की नींव रखी ्ी, बक्कमचंद्र जी
                                                                   ू
          भरसका पह्ला शबद ही हमािे हृदय में   ने ‘वंदे मातिरम्’ क्लखकर मातिृभक्म और
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          भावनाओं का उफान ्ला देरा है। ‘वंदे   उ्सकी ्सतिानों के उ्सी ररशति को भाव
                                                                  े
          मातिरम्’ इ्स एक श्द में क्कतिने ही भाव   क्वशव में एक मत् के रूप में बाँध क्दया
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          हैं, क्कतिनी ऊजा्षएँ हैं। ्सहज भाव में ये हमें   ्ा।
          माँ भारतिी के वात्सलय का अनुभव करातिा   साभिययो, आप ्सोच रहे होंगे क्क मैं
          है। यही हमें माँ भािरी की संरानों के   अचानक ्से वंदे मातिरम् की इतिनी बातिें
          रूप में अपने दाभयतवों का बयोध किारा   ्यों कर रहा हूँ। दिअस्ल कुछ ही भदनों
          है। अगि कभठनाई का समय हयोरा है रयो   बाद, 7 नवमबि कयो हम ‘वंदे मारिम्’
          ‘वंदे मारिम्’ का उदघयोष 140 कियोड़   के 150वें वष्त के उतसव में प्रवेश किने
          भािरीयों कयो एकरा की ऊरा्त से भि   वा्ले हैं। 150 वष्त पूव्त ‘वंदे मारिम्’ की
          देरा है।                          िचना हुई िी औि 1896 (अट्ािह सौ
              साभिययो, राषट्रभक्ति, माँ भारतिी ्स  े  भछयानवे) में गुरुदेव िबीनद्रनाि टैगयोि
          प्रम, यह अगर श्दों ्से परे की भावना   ने पह्ली बाि इसे गाया िा।
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          है तिो ‘वंदे मातिरम्’ उ्स अमति्ष भावना को   साभिययो,  ‘वंदे  मातिरम्’  के  गान  में
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          ्साकार सवर देने वाला गीति है। इ्सकी   करोडों देशवाक््सयों ने हमेशा राषट्र प्रेम के
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          रचना  बक्कमचंद्र  चट्ोपाधयाय  जी  न  े  अपार उफान को मह्स्स क्कया है। हमारी
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          सभदयों की ग्लामी से भशभि्ल हयो चुके   पीक्ढ़यों ने ‘वंदे मातिरम्’ के श्दों में भारति
          भािर में नए प्राण फूकने के भ्लए की   के एक जीवंति और भवय सवरूप के दश्षन
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          िी। ‘वंदे मातिरम्’ भले ही 19वीं शतिा्दी   क्कए हैं।






















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