Page 32 - Mann Ki Baat - Hindi
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स़ांस्ततक ज़ागृतत को सक्षम करत़ा
ृ
भारतीय विरासत का पुनर्जीिन
ु
अपनी पिमपिाओं, अपनी िदनया की सबसे पुिानी सभयताओं
धिोहिों को जी्ंत ि्खने के दलए हमें में से एक भाित ने सांसकृदतक द्द्धता
उनहें सहेजना होता है, उनहें जीना होता के द्दभन्न िीदत-रि्ाज़ों औि पिमपिाओं
है, उनहें अगली पीढ़ी को दस्खाना को अपने अनूठे ताने-बाने में बुना है।
होता है। मुझे ्खुशी है दक आज इस उत्ति से िदक्ण औि पू््व से पश्िम तक
दिशा में अनेकों प्यास हो िहे हैं। िैला यह िेश िीदत-रि्ाज़ों, भाराओं,
कला-शैदलयों, संगीत तिा नृतय रूपों,
-प्धानमंत्ी निनद्र मोिी ्खान-पान, पोशाकों, तयोहािों औि
े
(‘मन की बात’ के समबोधन में ) बहुत कुछ का प्िश्वन किता है। दसनधु
घाटी सभयता के िौिान उभिे औि गूढ़
कलाकािी दमट्ी के बत्वनों औि मूदत्व
कलाकृदतयों से लेकि दबहाि की स्िेशी
मधुबनी पेंदटंग औि शुरुआती कला
रूपों में से एक– ओदडशा की पट्दित्
कला तक, भाित की लोक कला औि
पिमपिाएँ िंगों औि द्िासत के जी्ंत
दमश्रण का उिाहिण हैं।
यह कोई आ्िय्व की बात नहीं है
दक हमािी संसकृदत के कई ज्ाात पहलुओं
के बीि हमािी द्िासत से जुड़े कई दछपे
हुए औि भूले-दबसिे पहलू हैं, दजनहोंने
ै
“प्धानमंत्ी जी ने उज्न के दत््ेणी हमािे िेश के इदतहास औि लोकािाि के
संग्रहालय को लेकि जो बात कही जदटल दित्पट में योगिान दिया है औि
है, दन:संिेह ्ह बहुत महत््पूण्व औि अतीत को ्त्वमान के साि बाँधना जािी
े
ि्खांदकत किने ्ाली है, कयोंदक ि्खा है। आने ्ाली पीदढ़यों के दलए इन
उज्न एक ऐसी नगिी है, जो खजानों को संिदक्त किना औि बढ़ा्ा
ै
भाितीय संसकृदत की द्िासत की िेना आ््यक है तादक भाित द्द्ध
सनातन पिमपिा का प्दतदनदधत् सांसकृदतक पच्ीकािी की इस मनोिम
किती है।” यात्ा को जािी ि्ख सके।
-अदमत शमा्व भाितीय कला, संसकृदत औि
दिएटि आदट्डसट द्िासत की इस परि्त्वनशील सुंििता
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