Page 7 - MANN KI BAAT (Hindi)
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साखथयो, बाबा साहब इस बात पर
          जोर  िे  रहे  थे  खक  संखिधान  सभा  एक   डॉ. राजन्द्र प्साि
                                                          बे
          साथ, एक मत हो और खमलकर सि्ष खहत
          के खलए काम करे। मैं आपको संखिधान
          सभा की एक और audio clip सुनाता
          हूँ। ये audio डॉ. राजेनद्र प्रसािजी का है,
          जो हमारी संखिधान सभा के प्रमुि थे।
          आइए डॉ. राजेनद्र प्रसािजी को सुनते हैं -



                                              (3 दिसमबर, 1884 - 28 फरवरी, 1963)
                                                 y  भारत के प्थर राष्ट्रपहत (1950-1962)
              “हमारा  इखतहास  बताता  है  और      y  हबिारी छात्र समरेलन की सथापना (1906)
          हमारी संसकखत खसिाती है खक हम शांखत     y  सादगी और सा्व्मजहनक से्वा के प्हत सरप्मण
                   कृ
                                                 के हलए ह्वख्ात
          खप्रय हैं और रहे हैं। हमारा साम्ाजय और
          हमारी फतह िूसरी तरह की रही है, हमने
          िूसरों को जंजीरों से, चाहे िो लोहे की हों
          या सोने की, कभी नहीं बाँधने की कोखशश   साखथयो,  डॉ.  राजेनद्र  प्रसािजी  ने
          की है। हमने िूसरों को अपने साथ लोहे   मानिीय मूलयों के प्रखत िेश की प्रखतबद्धता
          की जंजीर से भी जयािा मज़बूत मगर   की  बात  कही  थी।  अब  मैं  आपको  डॉ.
                                            शयामा प्रसाि मुिजजी की आिाज़ सुनाता
          सुंिर और सुिि रेशम के धागे से बाँध
                                      कृ
          रिा है और िो बंधन धम्ष का है, संसकखत   हूँ।  उनहोंने  अिसरों  की  समानता  का
          का  है,  ज्ाान  का  है।  हम  अब  भी  उसी   खिषय उठाया। डॉ. शयामा प्रसाि मुिजजी
                                            ने कहा था -
          रासते पर चलते रहेंगे और हमारी एक
          ही इचछा और अखभलाषा है, िो अखभलाषा
          ये है खक हम संसार में सुि और शांखत
          कायम करने में मिि पहुँचा सकें और     “I hope  sir that we shall go
          संसार के हाथों में सतय और अखहंसा, िो   ahead with our work in spite of
          अचूक हखथयार िे सकें खजसने हमें आज   all difficulties and thereby help
          आज़ािी तक पहुँचाया है। हमारी खज़ंिगी   to create that great India which
          और संसकखत में कुछ ऐसा है खजसने हमें   will be the motherland of not this
                  कृ
                                 ं
          समय के थपेड़ों के बािजूि खजिा रहने   community or that, not this class
          की शककत िी है। अगर हम अपने आिशशों   or that, but of every person,
          को सामने रिे रहेंगे तो हम संसार की   man,  woman  and  child  inhabiting
          बड़ी सेिा कर पाएँगे।”

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