Page 40 - Mann Ki Baat - Hindi
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हुए दो पेशेंटस की द्ाई अगले महीन े प्फतशत रोगी की इमप्ू्में् तो एक साल
समापत हो जाएगी और बाफकयों की भी में ही फदिती है।
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सेहत सुधर रही है। फन-क्य फमत् के पी् सबसे बड़ी सोच
सरकार ने ्ीबी के उनमलन के यही िी फक कमयुफन्ी की भागीदारी स े
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फलए जो कदम उिाए हैं, उसका बहुत अपनेपन की भा्ना पैदा हो। इस बीमारी
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इमपक् हुआ है। मैं िुद इस मफहम स े से जड़ी जो फतरसकृत भा्ना और एक
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काफ़ी समय से जड़ी हँ, गा् िेड़े में भी नकारातमक सोच है, ्ह ह्ाने के फलए ही
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जाती हँ, शहरों में भी इसके बारे में चचा्द फन-क्य फमत् की शुरुआत की गई, फजसस े
करती हँ और मुझे सबसे अच्ी बात यह आपस में एक-दूसरे को समभालने और
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लगती है फक बच् भी ्ीबी चकमपयन बन फमत्ता की भा्ना आ जाए। इससे अपन े
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रहे हैं। बड़े लोगों के साि ्ो्-्ो् बच्े आप में आधी जीत हो जाती है, फजसस े
भी, जो स्ा्दइ्र हैं, अब िुद ्ीबी की सिल इलाज की जाँच अौर द्ाई लेना
नॉलेज अपने-अपने एररया में दे रहे हैं। आसान हो जाता है, कयोंफक मानफसक रप
जैसे ही कोई इफनफशएफ्् देश्ाफसयों का से जब आप िुश महसूस करते हैं तो आप
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अपना हो जाता है और फजसमें फज़ममदारी लमब इलाज के फलए भी अपना हौसला
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की भा्ना आ जाती है, लोग उसमें बि- रिते हैं।
चि के भाग लेते हैं। इससे लोगों को ग््द हमारा भारत देश बहुत फ्शाल है, 80
का एहसास होता है और आतमा को शाफत प्फतशत लोग गा्ों में रहते हैं और हमारी
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फमलती है फक इनसान होने के नाते हम पॉपुलेशन भी बहुत ज़यादा है। जो हमार े
फकसी और इनसान के काम में आ सके। जयोग्ाफिकल, इकोनॉफमकल चैलेंज हैं,
फन-क्य फमत् एक बहुत ही संदर मफहम ह ै अलग-अलग तबके के लोग जब ्ीबी
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और मैं िुद कह रही हँ फक 10 में से 30 से ग्फसत होते हैं तो उनको ट्रैक करना
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