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अपनी कला-िंसकवति के प्वति देशिावियों का ये उतिाह
                                 कृ
                ‘अपनी विरािति पर गिजा’ की भािना का ही प्कटीकरण है।


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        क़ाय्वक्रम जनभ़ागी़्ारी की एक अ् भुत   ऐसे  उ़्ाहरण  भेजे  हैं।  हमने  उन  तीन
        चमस़ाल बन गए िे। ‘मन की ब़ात’ में   कॉमपिीशन को लेकर भी ब़ात की िी,
        हमने ऐसे चकतने ही लोगों के प्रय़ासों को   जो  ्ेशभसकत  पर  ‘गीत’  ‘लोरी’  और
        ह़ाइल़ाइि चकय़ा है, जो चन:सव़ाि्व भ़ाव स  े  ‘रंगोली’ से जुड़े िे। आपको धय़ान होग़ा,
                                                                     े
        चशक़्ा के चलए क़ाम कर रहे हैं। आपको   एक ब़ार हमने ्ेश भर के सिोरी िलर
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                                                  े
        य़ा् होग़ा, एक ब़ार हमने ओचडश़ा में ्ल  े  से सिोरी िचलंग के म़ाधयम से चशक़्ा की
        पर ि़ाय बिने व़ाले सवगजीय डी. प्रक़ाश   भ़ारतीय  चवध़ाओं  पर  िि़ा्व  की  िी।  मेऱा
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        ऱाव जी के ब़ारे में िि़ा्व की िी, जो ग़रीब   अिटूि चवशव़ास है चक स़ामचहक प्रय़ास स  े
        बच्ों को पढ़़ाने के चमशन में लगे हुए िे।   बड़े-से-बड़़ा ब्ल़ाव ल़ाय़ा ज़ा सकत़ा है।
        झ़ारखंड के ग़ाँवों में चडचजिल ल़ाइब्ेरी   इस स़ाल हम जह़ाँ आज़ा्ी के अमृतक़ाल
        िल़ाने व़ाले संजय कशयप जी हों, कोचवड   में आगे बढ़ रहे हैं, वहीं G-20 की अधयक्त़ा
        के ्ौऱान इ-लचनिंग के जररए कई बच्ों   भी कर रहे हैं। यह भी एक वजह है चक
        की म्् करने व़ाली हेमलत़ा एन. के. जी   एजुकेशन के स़ाि-स़ाि ड़्ाइवस्व गलोबल
        हों, ऐसे अनेक चशक्कों के उ़्ाहरण हमन  े  कलिर को समृद्ध करने के चलए हम़ाऱा
        ‘मन की ब़ात’ में चलए हैं। हमने कलिरल   संकलप और मजबूत हुआ है।
        चप्रजवशन  के  प्रय़ासों  को  भी  ‘मन  की
            वे
        ब़ात’ में लग़ात़ार जगह ्ी है।         मेरे  पय़ारे  ्ेशव़ाचसयो,  हम़ार  े
            लक््ीप  क़ा  कुममल  ब््स्व  िैलेंज   उपचनष्ों क़ा एक मंत्र सच्यों से हम़ार  े
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        कलब हो, य़ा कऩा्विक़ा के ‘कवमश्ी जी’   म़ानस को प्ररण़ा ्ेत़ा आय़ा है।
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        ‘कल़ा िेतऩा’ जैसे मि हों, ्ेश के कोने-  िरैवचत िरैवचत िरैवचत।
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        कोने  से  लोगों  ने  मुझे  चिठिी  चलखकर   िलते रहो-िलते रहो-िलते रहो।
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