Page 6 - MKV (Hindi)
P. 6
ब़ात’ को इतने महीने और इतने स़ाल
गुजर गए। हर एचपसोड अपने आप
में ख़ास रह़ा। हर ब़ार, नए उ़्ाहरणों
की नवीनत़ा, हर ब़ार ्ेशव़ाचसयों की
नई सिलत़ाओं क़ा चवसत़ार। ‘मन की
ब़ात’ में पूरे ्ेश के कोने-कोने से लोग
जुड़े, हर आयु-वग्व के लोग जुड़े। ‘बिी-
े
े
बि़ाओ, बिी-पढ़़ाओ’ की ब़ात हो, सवच्
े
भ़ारत आन्ोलन हो, ख़ा्ी के प्रचत प्रम हो
य़ा प्रकृचत की ब़ात, ‘आ़ज़ा्ी क़ा अमृत
महोतसव’ हो य़ा चिर अमृत सरोवर की
ब़ात, ‘मन की ब़ात’ चजस चवषय से जुड़़ा,
वो जन आन्ोलन बन गय़ा और आप
लोगों ने बऩा च्य़ा। जब मैंने ततक़ालीन
अमेररकी ऱाष्ट्रपचत बऱाक ओब़ाम़ा के
स़ाि स़ाझ़ा ‘मन की ब़ात’ की िी, तो
इसकी िि़ा्व पूरे चवशव में हुई िी।
स़ाचियो, ‘मन की ब़ात’ मेरे चलए तो
्ूसरों के गुणों की पूज़ा करने की तरह
ही रह़ा है। मेरे एक म़ाग्व्श्वक िे – श्ी
लक्मणऱाव जी ईऩाम़्ार। हम उनको
वकील स़ाहब कह़ा करते िे। वो हमेश़ा
कहते िे चक हमें ्ूसरों के गुणों की पूज़ा
करनी ि़ाचहए। स़ामने कोई भी हो, आपके
स़ाि क़ा हो, आपक़ा चवरोधी हो, हमें
े
उसके अच् गुणों को ज़ानने क़ा, उनस े
सीखने क़ा प्रय़ास करऩा ि़ाचहए। उनकी
े
इस ब़ात ने मुझे हमेश़ा प्ररण़ा ्ी है। ‘मन
की ब़ात’ ्ूसरों के गुणों से सीखने क़ा
बहुत बड़़ा म़ाधयम बन गई है।
मेरे पय़ारे ्ेशव़ाचसयो, इस क़ाय्वक्रम
ने मुझे कभी भी आपसे ्ूर नहीं होन े
च्य़ा। मुझे य़ा् है, जब मैं गुजऱात क़ा
ं
मुखयमत्री ि़ा, तो वह़ाँ स़ाम़ानय जन स े
चमलऩा-जुलऩा सव़ाभ़ाचवक रप से हो ही
ं
ज़ात़ा ि़ा। मुखयमत्री क़ा क़ामक़ाज और
क़ाय्वक़ाल ऐस़ा ही होत़ा है, चमलने-जुलन े
2 2