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          व़ाली  पहली  मचहल़ा  अचधक़ारी  कैपिन   प्ररक अनुभव भी ि़ा। पैनल के प्रतयक
          चशव़ा िौह़ान, ह़ाि से बनी अपनी सुन्र   स्सय  के  प़ास  मचहल़ा  सशकतीकरण
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          तंज़ावुर गचड़य़ा के चलए प्रचसद्ध ि़ारगैगल   के  ब़ारे  में  बत़ाने  के  चलए  कु्-न-कु्
          कैचवऩाई  पोरुतकल  चवरपनई  अंगड़ी   च्लिसप  पहलू  िे।  नग़ालैंड  की  चलडी-
                                                                 ं
          के  कल़ाक़ार,  ई-ररकश़ा  के  म़ाधयम  स  े  क्रो-यू की मचहल़ाएँ और च्वय़ाग बच्ों की
          सवतंत्रत़ा  और  सशकतत़ा  प़ाने  व़ाली   चशक़्ा के चलए क़ाम से जड़ी ्ीपम़ाल़ा प़ांडे
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          ्त्ीसगढ़  के  ्ंतेव़ाड़़ा  की  आच्व़ासी   जैसी कई मचहल़ा िजमेकर कॉनकलव में
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          मचहल़ाएँ और एचशय़ा की पहली मचहल़ा   मौज्  िीं।  यह  कॉनकलव  ब्ल़ाव  की
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          लोको  प़ायलि  सुरेख़ा  य़ा्व  जैसी   इतनी स़ारी कह़ाचनय़ाँ सुनने और ख् को
          उतकृष्ि  मचहल़ाओं  को  म़ानयत़ा  ्ी  है।   उस पररवत्वन क़ा चहसस़ा बऩाने की च्श़ा
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          प्रध़ानमत्री द़्ाऱा म़ानयत़ा प्ऱापत करऩा न   में प्रररत होने क़ा एक मह़ान अवसर ि़ा।
          केवल भ़ारत की मचहल़ाओं के बीि गव  ्व  ‘मन की ब़ात’ भ़ारत के उन कोनों
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          प़्ा करत़ा है अचपतु युव़ा लड़चकयों को   तक पहि गय़ा है, जह़ाँ सम़ाि़ारपत्र भी
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          भी सशकत बऩात़ा है, उनके चवशव़ास को   नहीं  पहिते।  इससे  सम़ाज  के  चनिल  े
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          बढ़़ाव़ा ्ेत़ा है चक ्ढ़ संकलप चकसी भी   तबके  के  लोगों  को  ऱाष्ट्रीय  सतर  पर
          ब़ाध़ा को ्ूर कर सकत़ा है।        पहि़ान चमल रही है। इन वयसकतयों पर
              मुझे नई च्लली में ‘मन की ब़ात’   प्रध़ानमत्री  की  सपॉिल़ाइि  लोगों  को
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          @100 कॉनकलव में ‘ऩारी शसकत’ पर एक   प्रररत और उतस़ाचहत करती है, उनह क़ाम
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          पैनल िि़ा्व क़ा चहसस़ा बनने क़ा सौभ़ागय   करने की च्श़ा में प्रररत करती है और
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          चमल़ा।  ऐसी  प्रचतसष््त  हससतयों  के  स़ाि   ‘सबक़ा स़ाि, सबक़ा प्रय़ास’ की भ़ावऩा
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          मि स़ाझ़ा करऩा सीखने के स़ाि-स़ाि   को मजबूत करती है।
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